आत्म चिंतन के बिना आत्म कल्याण संभव नहीं – सुरेन्द्र राखेचा*
“महावीर मेरा पंथ” के आयोजन में देश भर से श्रावक-श्राविकाओं ने लिया हिस्सा

बीकानेर। प्रभु की वाणी को हमने इस जन्म में प्रभु से नहीं सुनी, परन्तु गुरु से सुनी है। कहने को हम स्वयं को जैन कह रहे हैं। लेकिन, हमारी अरिहंत में श्रद्धा नहीं है। हमने मिथ्या को पकड़ रखा है। अरिहंत की वाणी के 35 गुण है। इस वाणी में प्रमुख बातें जो स्पष्ट होती है, वह यह है कि उनकी बात में विरोधाभास नहीं है, उनकी बात गंभीर होती है। वे बात को दोहराते नहीं है। वह किसी पर व्यंग्य नहीं करते। यह गुण केवल दोहराने और रटने के लिए नहीं है। यह गुण अपने जीवन में भी अपनाने के लिए है। यह उद्गार ‘महावीर मेरा पंथ’ के संयोजक सीए सुरेन्द्र जी राखेचा (सूरत) ने सोमवार को नोखा रोड स्थित डागा पैलेस में अपने संबोधन में व्यक्त किए। जैन धर्म से जुड़े सैंकड़ो धर्मावलम्बियों को संबोधित करते हुए उन्होंने अनेकानेक उदाहरणों के द्वारा जैन धर्म की विशेषताओं को अवगत कराने के साथ धर्म को मन, वचन और कर्म से अपनाने की बात पर बल दिया। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘मैं और मेरे महावीर’ का सार के वाक्याशों का सुक्ष्मता के साथ विवेचन किया। राखेचा ने उपस्थित जन समूह को कार्यक्रम के अंत तक बांधे रखा। कार्यक्रम में देश भर से श्रावक पधारे। कोलकाता महानगर के सुप्रसिद्ध समाजसेवी राजेन्द्र प्रसाद बोथरा, प्रकाश रवि पुगलिया सहित अनेक गणमान्य जन उपस्थित थे।

इस दौरान सुरेन्द्र जी राखेचा ने विभिन्न विषयों का व्याख्यान करते हुए बताया कि जहां भ्रांति की स्थिति हो वहां मौन रहना श्रेष्ठ होता है।
धर्म के प्रति आस्था को लेकर उन्होंने कहा कि आत्म चिंतन के बिना आत्म कल्याण संभव नहीं है। अगर आपको धर्म में प्रवेश करना है तो सबसे पहले आपको व्यवहार में सरलता और सहजता लाना आवश्यक है। जहां सहजता और सरलता होती है, वहां आपका प्रवेश भी सीधा हो जाता है। मिथ्यात्म पर चर्चा करते हुए सुरेन्द्र राखेचा ने कहा कि मिथ्यात्म का पौधा वाणी में, पेड़ आचरण में होता है। समकित धारी कौन…? पर कहा कि स्वार्थी समकित नहीं होता और परोपकारी समकित होता है। साथ ही बताया कि समकित की टेस्टिंग शास्त्रों के माध्यम से नहीं मिलती। इतना ही नहीं तीर्थंकर भी सभी को समकित नहीं दे सकते। इस दौरान उन्होंने समकित और अद्र्धसमकित के बारे में भी उदाहरण सहित उपस्थितजन को अवगत कराया। कार्यक्रम में उन्होंने गुरु के लिए कहा कि गुरु उसे ही बनाना चाहिए जो आपके व्यवहार और वाणी को शुद्ध कर देता है। जीवन व्यवहार संबंधी ज्ञान से अवगत कराते हुए सुरेन्द्र राखेचा ने कहा कि लिखी बात और सुनी बात में बहुत बड़ा अंतर होता है।

जैन धर्म सरल या कठिन

महावीर मेरा पंथ के संयोजक श्री सुरेन्द्र राखेचा ने उपस्थित जनसमूह से कहा कि भगवान महावीर के जैन धर्म की स्थापना की, मैं आपसे पूछता हूं कि भगवान महावीर ने जैन धर्म के जो नियम बनाए वह सरल बनाए या कठिन बनाए। उपस्थित जन समूह में से सरल की आवाज आने पर दूसरा प्रश्न किया कि फिर यह धारणा किसने बनाई कि जैन धर्म सबसे कठोर धर्म है। तत्पश्चात उन्होंने कहा कि जब तक हमारी हमारे धर्म के प्रति मान्यता सही नहीं होगी, हम सही मार्ग प्राप्त नहीं कर सकते। साथ ही उन्होंने मंत्रो का प्रयोग किस प्रकार से और किस श्रावक-श्राविकाओं को कौनसे मंत्र का जाप करना चाहिए, की संपूर्ण जानकारी से अवगत कराया।
कार्यक्रम में विवेचनकार गर्वित कोचर, लोकेश जैन, सुदेव डोशी, लीना जैन, अंकित कोचर, श्रीमती रुचि जैन ने ऊं, नवकार मंत्र, धर्म और अराधना को लेकर अपने दृष्टिकोण से अवगत कराया। कार्यक्रम पश्चात सधर्मी लोगों के लिए गौतम प्रसादी का आयोजन भी किया गया।

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