बीकानेर. आयग्यो-आयग्यो, बोई काट्या है फेर उड़ा और गळी में-गळी में आदि स्वर घर-घर की छतों पर गूंजते रहे। आखातीज पर दिनभर पतंगबाजी का दौर चला। शहर का आकाश रंग बिरंगी पतंगों से आच्छादित रहा। घर-घर की छत पर बच्चों से बुजुर्ग और बालिकाएं व महिलाएं मौजूद रही। सुबह से शुरु हुआ पतंगबाजी का दौर शाम ढलने तक जारी रहा। छतों पर पतंगबाजों की मंडलिया मौजूद रही। पतंगबाजी के साथ-साथ खान-पान के दौर चलते रहे। वहीं माइक पर स्वरों की गूंज के साथ फिल्मी और राजस्थानी गीतों की गूंज रही। घरों में खीचड़ा-इमलाणी का भोजन हुआ। शाम ढलने पर पतंगबाजी के साथ-साथ आतिशबाजी हुई। छतों पर शंख ध्वनि, झालर की झंकार और घंटियों की टंकार से खुशियां प्रकट की गई
पतंगे काटने व लूटने का चला सिलसिला
आखातीज पर पतंगबाजी के दौरान घरों की छतों पर मौजूद परिवारजनों व युवाओं की मंडलियों में पतंगों के पेच लड़ाने, काटने का सिलसिला दिनभर चला। दूसरों की पतंग काटने पर इनका जोश और खुशियां देखते ही बन रही थी। पतंगबाजी के साथ-साथ घरों की छतों पर कटी पतंगों को लूटने वाले भी सक्रिय रहे। हाथों में बांस, लकडि़या और कंटीली झाडिया लिए कटी पतंगों को लूटने में बच्चे और युवा तत्पर रहे।
युवतियों व महिलाओं ने की पतंगबाजी
आखातीज पर घरों की छतों पर परिवारों के हर आयु वर्ग के सदस्य मौजूद रहे। बच्चों से बुजुर्गो तक ने जमकर पतंगबाजी की। कई घराें की छतों पर युवतियों और महिलाओं ने भी पतंगबाजी की। महिलाओं ने पतंगों के पेच लड़ाए और पतंगबाजी की परम्परा का निर्वहन किया।

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