गणगौर पूजन के तहत महिलाओं ने यहां घरों में ईसर- गणगौर के बिंदोरे निकाले है।इस अवसर पर विधिवत पूजा अर्चना कर पारंपरिक मंगल गीत गाए । पूजन करने वाली महिलाओं व कन्याओं ने बताया कि होलिका दहन की राख से बनी पिंडलियों की पूजा करने के बाद आठवें दिन एकत्र होकर कन्याओं ने मिट्टी से ईसर- गणगौर सहित कान्हू जी,भाईया,मालन,ढोलन,सोदरा, आदि की प्रतिमाएं तैयार की। पूजन करने वाली महिलाएं प्रतिदिन शाम के समय प्रतिमाओं को बड़े थाल में सजा कर गीत गाती हुई घरों में जाकर बिंदोरा निकालती है।यह रस्म पारंपरिक तौर पर शादी के समय दूल्हा-दुल्हन का बिंदौरा निकालने से जुड़ी हुई बताते है। इसे लेकर उत्साहित महिलाओं ने ‘ईसरलाल बीरा चुनरी रंगाई रेÓ,’ईसर प्यारा जैपुर जाइजो जी,आंवता लाईजो तारां री चुनरी Ó सहित विभिन्न प्रचलित लोक गीत गाए और बिंदोरे के लिये सूरसागर स्थित पार्क में गई।
यह है परम्परा
महिलाओं ने बताया कि परंपरा अनुसार सबसे पहले ईसर गणगौर की आरती की जाती है। उसके बाद भोग लगाकर प्रसाद का वितरण किया जाता है। इस दौरान बिंदौरा निकालने वाले परिवार की ओर से साथ आई महिलाओं को जलपान करवा कर आवभगत की जाती है। पूजन कार्यक्रम के बाद खुशियां मनाती महिलाएं थाली में सजी प्रतिमाओं को पूजन स्थल पर वापस ले जाती है । सुबह पूजन और शाम को रोजाना अन्य घरों मे बिंदोरा निकालने का सिलसिला चैत्र मास के शुक्लपक्ष की दूज तक जारी रहता है। अंतिम दिन सवारी निकालकर नगर परिक्रमा के बाद गणगौर का विसर्जन होता है।
