शहर मे होलिका दहन के दूसरे दिन से चल रहे गणगौर पूजन महोत्सव के अर्न्तगत ढढों के चौक के दशकों पुरानी परम्परानुसार चांदमल ढढा की गणगौर का दो दिवसीय वार्षिक मेला भरा। वार्षिक मेले के दौरान शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों से आई महिलाओं एवं युवतियों ने गणगौर का दर्शन पूजन कर मनवांछित फल की कामना की। मेले के दौरान पंहुचे श्रद्धालुओं के लिए व्यापक व्यवस्थाऐं की गई। महिलाओं ने चांदमल ढढा की गणगौर का खोळा भरकर मनौतियों मांगी।
पुत्र प्राप्ति के लिए नृत्य
दशकों पुरानी परम्परा एवं मान्यता के अनसार चांदमल ढढा की गणगौर के समक्ष विवाहित महिलाओं ने पुत्र प्राप्ति की मनोकामना को लेकर नृत्य किया व मनौती मांगी। ढोल व झालर की झंकार के साथ एक के बाद एक दर्जनों महिलाओं ने गणगौर समक्ष नृत्य किया। चांदमल ढढा परिवार के सदस्य रविन्द्र कुमार ढढा के अनुसार महिलाओं में मां गवरजा के प्रति अटृट श्रद्धा एवं भक्ति भावना हैं कि गणगौर के समक्ष नृत्य कर पुत्र प्राप्ति का वर मांगने पर मां गवरजा उनकी गोद भर देती है। इसी श्रद्धा व आस्था को लेकर महिलाऐं मां गवरजा के समक्ष भाव विभोर होकर नृत्य करती है। महिलाओं मे नृत्य करेन की होड सी बनी रहती है।
155 वर्ष पुराना ऐतिहासिक मेला
ढढों के चौक मे प्रतिवर्ष आयोजित हने वाला चांदमल ढढा की गणगौर का मेला 155 वर्ष पुराना है। रविन्द्र कुमार ढढा के अनुसार मेले के प्रति लोगो मे प्रगाढ आस्था व भक्ति भावना है। शहर से गांवों तक के लोग मां गवरजा एवं भाया के दर्शन हेतु ढढों के चौक मे पंहुचते है। चांदमल ढढा परिवार के सदस्य भी देश के विभिन्न स्थानों व विदेशों से मेले के दौरान बीकानेर पंहुचते है व मां गवरजा की पूजा अर्चना कर मनवांछित फल की कामना करते है।
सुंदरता, आभुषण व गीतों के लिए प्रसिद्ध
गणगौर पूजन महोत्सव मे चांदमल ढढा की गणगौर का विशेष स्थान एवं महत्व है। रियासत काल से अब तक चांदमल ढढा की गणगौर अपने अद्वितीय सुंदरता, कलात्मक आभूषणों एवं गणगौर गीतों मे विशेष स्थान रखती है। बीकानेर मे गणगौर गीतों का गायन कही पर भी चांदमल ढढा की गणगौर के रूप श्रृंगार तथा राजसी ठाठ-बाट का बखान नूंवी हवेली, पौटे गवरजा, खस खस पंखा गीत के माध्यम से होता है।
